Mp Politics:हार के बाद भी क्यों रेस से बाहर नहीं हुए नरोत्तम मिश्रा, ये जिम्मेदारी सौंप सकता है भाजपा आलाकमान – Mp Politics: Bjp Top Leadership Could Hand Over New Responsibilities To Narottam Mishra – Mumbai Highlights News | Latest Mumbai Highlights News | Mumbai News

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आमतौर पर ऐसी कहावत कि प्यार में टूटा प्रेमी और चुनाव में हारा नेता शायर बन जाता है। कुछ ऐसा ही वाकया मध्यप्रदेश के पूर्व गृह मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा के साथ देखने को मिल रहा है। दतिया सीट से मिली शिकस्त के बाद हर तरफ उनकी हार के चर्चे हो रहे हैं। लेकिन हार के बाद भी उनके बयान लगातार सुर्खियों में बने हुए हैं।

चुनाव हारने के बाद डॉ. मिश्रा का एक वीडियो वायरल हो रहा है। इसमें वे अपने कार्यकर्ताओं के बीच शायरी करते हुए नजर आ रहे हैं। नरोत्तम मिश्रा अपनी हार पर कहते हैं, ‘इतना भी गुमान न कर अपनी जीत पर ऐ बेखबर, तेरी जीत से ज्यादा चर्चे मेरी हार के हैं।’ उन्होंने कार्यकर्ताओं से ये भी कहा, मैं लौटकर वापस आऊंगा। ये मेरा आपसे वादा रहा है। इस बीच चर्चाएं यह भी जोर पकड़ने लगी हैं कि डॉ. मिश्रा उप चुनाव लड़ सकते हैं और वो सीट मुरैना जिले की दिमनी भी हो सकती है।

इसके अलावा पार्टी के राष्ट्रीय संगठन में वे किसी बड़ी जिम्मेदारी पर आ सकते हैं। एक चर्चा यह है कि भविष्य में हाईकमान उन्हें भाजपा प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी भी सौंप सकता है। क्योंकि वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा का कार्यकाल खत्म होने जा रहा है। डॉ. मिश्रा दतिया सीट से चौथी बार विधानसभा चुनाव लड़ थे। लेकिन यहां से कांग्रेस उम्मीदवार भारती राजेंद्र ने 7,742 वोटों से जीत हासिल की है। इससे पहले नरोत्तम मिश्रा ने 2008, 2013 और 2018 में जीत हासिल की है।

इस तरफ हो सकता है उपचुनाव का रास्ता साफ

डॉ. मिश्रा मध्यप्रदेश सरकार में कद्दावर मंत्रियों में गिने जाते हैं, लेकिन इस बार चुनाव में हार की वजह से उनके राजनीतिक भविष्य पर चर्चाएं होने लगी हैं। दरअसल, भाजपा ने 2018 के चुनाव में हारी हुई सीटों को जीतने के लिए तीन केंद्रीय मंत्रियों, चार सांसदों और एक राष्ट्रीय महासचिव को टिकट दिया था। इन नामों में सिर्फ सतना से सांसद गणेश सिंह और मंडला की निवास सीट से केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते चुनाव हारे हैं। बाकी अन्य सीटों पर सभी ने चुनावी जीत हासिल की है। इसमें एक नाम मुरैना जिले की दिमनी सीट का भी है। यहां से पार्टी ने केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ नेता नरेंद्र सिंह तोमर को मैदान में उतारा था। इस चुनाव में तोमर ने बसपा उम्मीदवार बलवीर सिंह दंडोतिया को हराया था। अब नरोत्तम की हार और कुछ महीने बाद लोकसभा चुनाव करीब आने से इस सीट के भविष्य को लेकर भी चर्चाएं हो रही हैं।

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि भाजपा ने दिमनी सीट जीतने का टारगेट तय किया था। पार्टी ने बड़े संघर्ष के साथ हासिल भी कर लिया है। भाजपा अगर नरेंद्र सिंह तोमर को सीएम बनाती है, तो विधायक पद छोड़ने की बात ही खत्म हो जाती है। लेकिन अगर तोमर के अलावा कोई अन्य नेता सीएम बनता है, तो फिर तोमर विधायक सीट छोड़ने के बारे में सोच सकते हैं। क्योकि वे मुरैना लोकसभा सीट से सांसद भी हैं। केंद्र में कृषि मंत्रालय जैसे अहम मंत्रालय की जिम्मेदारी भी संभाल रहे हैं। तोमर की गिनती मोदी के करीबी मंत्रियों में होती है। 2024 के लोकसभा चुनाव करीब आ गए हैं। ऐसे में मुरैना जैसी लोकसभा सीट जीतना भी हर किसी नेता के लिए आसान नहीं हैं।

दिमनी में ठाकुर और ब्राह्मणों का वर्चस्व

दिमनी विधानसभा सीट पर ठाकुर और ब्राह्मण वोटर्स ही उम्मीदवारों की हार-जीत तय करते हैं। ठाकुर वोटर्स की संख्या सबसे ज्यादा है। इसके बाद निर्णायक स्थिति में ब्राह्मण मतदाता आते हैं। 2023 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने बलवीर सिंह दंडोतिया पर दांव खेला था। वे ब्राह्मण समाज से आते हैं। जबकि कांग्रेस ने तोमर समाज से उम्मीदवार उतारा था। ऐसे में दो तोमर और एक ब्राह्मण उम्मीदवार होने से यह लड़ाई कहीं ना कहीं ब्राह्मण बनाम ठाकुर के बीच देखी गई। अंत में नरेंद्र सिंह तोमर ने बाजी मार ली।

डॉ. नरोत्तम मिश्रा ने दतिया से पहले ग्वालियर जिले की डबरा सीट से भी चुनाव लड़ा है और जीत हासिल की है। लेकिन बाद में वो दतिया सीट से चुनाव लड़ने लगे। दतिया और दिमनी के बीच 140 किमी की दूरी है। मिश्रा ब्राह्मण समुदाय से आते हैं। अगर भाजपा मिश्रा को दिमनी से टिकट देती है, तो वहां सोशल इंजीनियरिंग दुरुस्त करने में बड़ी मदद मिल सकती है। ठाकुर के साथ-साथ ब्राह्मण समाज को भी अपने पाले में किया जा सकता है। इसके लिए नरोत्तम पर बड़ी चुनौती रहेगी। लेकिन, उनके राजनीतिक अनुभव और प्रभाव का इस्तेमाल भी पार्टी के लिए काम आ सकता है। लेकिन नरोत्तम को दिमनी में थोड़ी मेहनत और मशक्कत जरूर करनी पड़ेगी। मतदाताओं का भरोसा जीतना और नरेंद्र सिंह तोमर के साथ कदमताल करके चलने की रणनीति पर भी काम करना होगा। नरेंद्र सिंह तोमर की मदद से मिश्रा की राह आसान भी हो सकती है।

शाह के करीबियों में होती है मिश्रा की गिनती

सियासी जानकारों का कहना है कि पार्टी आलाकमान डॉ. नरोत्तम मिश्रा के अनुभव का हर हाल में फायदा उठाना चाहेगी। लेकिन, मध्यप्रदेश में उच्च सदन यानी विधान परिषद (एमएलसी) नहीं है। ऐसे में सदन तक पहुंचने के लिए सिर्फ विधानसभा का चुनाव लड़ना ही एकमात्र उपाय है। इसलिए उनकी हार के बाद उप चुनाव लड़ने की संभावनाएं तलाशी जा रही हैं। नरोत्तम ग्वालियर-चंबल इलाके से आते हैं और वहां फिलहाल एकमात्र दिमनी सीट ही ऐसी है, जहां उपचुनाव की संभावना बन सकती है। मिश्रा की गिनती केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के करीबी नेताओं में भी होती है। यह भी हो सकता है कि पार्टी MP Politics: हार के बाद भी क्यों रेस से बाहर नहीं हुए नरोत्तम मिश्रा, ये जिम्मेदारी सौंप सकता है भाजपा आलाकमान केंद्रीय संगठन में उन्हें राष्ट्रीय महासचिव जैसे पद पर काबिज कर उनकी संगठनात्मक क्षमता का उपयोग कर सकता है। इसके अलावा मिश्रा के मध्यप्रदेश भाजपा अध्यक्ष बनने की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता है।

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