Elections:लोस-विस चुनाव साथ कराने उच्चस्तरीय समिति कर रही विचार, 30 लाख ईवीएम की जरूरत – High Level Committee Research On Loksabha-vidhansabha Elections Simultaneously

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Elections:लोस-विस चुनाव साथ कराने उच्चस्तरीय समिति कर रही विचार, 30 लाख ईवीएम की जरूरत – High Level Committee Research On Loksabha-vidhansabha Elections Simultaneously

Elections:लोस-विस चुनाव साथ कराने उच्चस्तरीय समिति कर रही विचार, 30 लाख ईवीएम की जरूरत – High Level Committee Research On Loksabha-vidhansabha Elections Simultaneously
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High level committee research on Loksabha-Vidhansabha elections simultaneously

सांकेतिक तस्वीर।
– फोटो : सोशल मीडिया

विस्तार


देश में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के एकसाथ चुनाव के सुचारु संचालन के लिए चुनाव आयोग को करीब 30 लाख इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) की आवश्यकता होगी। सुगमतापूर्व चुनाव कराने के लिए तैयारी में लगभग डेढ़ साल का वक्त लगेगा। सूत्रों ने बताया कि एक ईवीएम में एक नियंत्रण इकाई, कम से कम एक मतपत्र इकाई और एक मतदाता सत्यापन योग्य पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपीएटी) इकाई शामिल होती है।

सूत्रों के मुताबिक, आरक्षित इकाइयों को ध्यान में रखते हुए, आयोग को एक साथ मतदान के लिए लगभग 30 लाख नियंत्रण इकाइयों, लगभग 43 लाख मतपत्र इकाइयों और लगभग 32 लाख वीवीपैट की आवश्यकता होगी। इस संबंध में आयोग ने कुछ महीने पहले विधि आयोग को सूचित किया था कि उसे इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों को संग्रहीत करने के लिए पर्याप्त भंडारण सुविधाओं की भी आवश्यकता होगी। 

चुनौतियों पर भी हुआ मंथन

विधि आयोग ने एक साथ चुनाव कराने के लिए अपनी आवश्यकताओं और चुनौतियों पर चुनाव आयोग के साथ बातचीत की थी। बातचीत से अवगत सूत्रों ने कहा कि जब ऐसी कोई कवायद होगी तो बहुत कुछ मतदान केंद्रों की संख्या पर निर्भर करेगा। पिछले लोकसभा चुनावों में 12.50 लाख मतदान केंद्र थे। आयोग को अब 12.50 लाख मतदान केंद्रों के लिए लगभग 15 लाख नियंत्रण इकाइयों, 15 लाख वीवीपैट इकाइयों और 18 लाख मतपत्र इकाइयों की आवश्यकता है। एक ईवीएम की लाइफ 15 साल होती है। इन वोटिंग इकाइयों की लागत कितनी है, इस पर कोई आधिकारिक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। पिछली खरीद दरों पर भी एक करोड़ इकाइयों की कुल लागत 15,000 करोड़ रुपये से अधिक होगी, जिसमें वीवीपीएटी इकाइयों के लिए 6,500 करोड़ रुपये भी शामिल है। यदि स्थानीय निकाय चुनाव भी लोकसभा और विधानसभा चुनावों के साथ कराए जाएं तो लागत और भी अधिक हो सकती है।

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