Death Penalty In Qatar:कतर में तेल का पैसा सिर चढ़कर बोलता है, भारतीयों को सजा क्या बड़ी साजिश का हिस्सा है? – Death Penalty In Qatar: Oil Money Speaks High Is Punishment To Indians Part Of A Bigger Conspiracy?

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Death Penalty In Qatar:कतर में तेल का पैसा सिर चढ़कर बोलता है, भारतीयों को सजा क्या बड़ी साजिश का हिस्सा है? – Death Penalty In Qatar: Oil Money Speaks High Is Punishment To Indians Part Of A Bigger Conspiracy?

Death Penalty In Qatar:कतर में तेल का पैसा सिर चढ़कर बोलता है, भारतीयों को सजा क्या बड़ी साजिश का हिस्सा है? – Death Penalty In Qatar: Oil Money Speaks High Is Punishment To Indians Part Of A Bigger Conspiracy?
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पिछले दिनों कतर में भारतीय नौसेना के आठ पूर्व कर्मियों को मौत की सजा सुनाई गई। सरकार इस मामले में कूटनीतिक स्तर पर प्रयास कर रही है, ताकि भारतीयों की रिहाई हो सके, लेकिन कतर की अदालत के इस फैसले की टाइमिंग पर सवाल उठ रहे हैं। यह संदेह गहरा रहा है कि कहीं हमास या पाकिस्तान की मदद के लिए तो यह सब नहीं किया जा रहा? आइए इस मुद्दे पर जानते हैं ‘खबरों के खिलाड़ी’ में आए विश्लेषकों की राय…    

प्रेम कुमार: इसमें कही-सुनी बातें ज्यादा हैं। राष्ट्रहित की बात अलग हो जाती है, लेकिन अगर हम पर किसी दूसरे देश के लिए जासूसी के आरोप लगते हैं तो इसके खिलाफ लड़ना चाहिए। हम आशा करते हैं कि सरकार इन अफसरों को बचाएगी। 

हर्षवर्धन त्रिपाठी: कतर अमीरों का इस्लामिक देश है। वह हिंदुस्तान जैसा देश नहीं है। वहां कानून-व्यवस्था जैसी बात नहीं है। कतर की निचली अदालत ने आरोपों की बुनियाद पर फैसला सुना दिया। भारत सरकार ने कूटनीतिक पहुंच की मांग की थी, जिसमें हमें सफलता मिल चुकी थी। तब उम्मीद थी कि आरोप खारिज हो जाएंगे। फिर अचानक मौत की सजा सुना दी गई। भारत सरकार का रुख स्पष्ट है कि हमास ने जो हमला किया, उस मामले में हम इस्राइल के साथ हैं। कतर में तेल का पैसा है, जो सर चढ़कर बोलता है। कतर पर कई आतंकी संगठनों पर फंडिंग के आरोप लगते हैं। अमेरिका का वहां सैन्य अड्डा है। चीन भी कतर का इस्तेमाल करता है। हमारे पास विकल्प यह है कि हम अमेरिका या सऊदी अरब का विकल्प अपनाकर कोशिश करें। जैसा कि हमने कुलभूषण जाधव के मामले में देखा कि हम अंतरराष्ट्रीय न्यायालय तक गए, हमें लगता है कि इस मामले में भी सरकार कोई कसर नहीं छोड़ेगी। भारत के लोग बहुत काबिल हैं। वहां आठ लाख लोग भारतीय हैं। कतर के लोगों को भारत के लोगों की जरूरत है। 

विनोद अग्निहोत्री: कतर की एक कंपनी में ये सेवानिवृत्त अफसर काम करते थे। ये नौसेना के असाधारण अफसर रहे हैं। एक को तो राष्ट्रपति पुरस्कार मिला है। हमारे देश के पूर्व सैनिक किसी दूसरे देश में जाकर किसी तीसरे देश के लिए जासूसी करें, यह बात हजम नहीं होती। इस्लामिक देशों में भारत के दोस्तों में कतर भी शामिल है। मोसाद के लिए हम क्यों जासूसी करेंगे? आरोप समझ से परे हैं। यह जरूर है कि सरकार की तरफ से लापरवाही रही। कतर में कई महीनों तक हमारे राजदूत नहीं रहे। हमने कुलभूषण जाधव के मामले में जैसी तेजी देखी, वैसी तेजी विदेश मंत्रालय ने इस मामले में नहीं दिखाई। शायद हमें लगा होगा कि कतर से हमारे बेहतर रिश्ते हैं तो हमारे लोग छूट जाएंगे। 

पाकिस्तान या हमास की इस मामले में कितनी भूमिका नजर आती है? इस मामले में आगे क्या होगा? 

प्रेम कुमार: पाकिस्तान हमारे विरोध में रुख अपनाता है, लेकिन सवाल यह है कि पाकिस्तान क्या कतर को प्रभावित कर लेगा और हम कुछ नहीं कर पाएंगे? यह सही है कि इस मामले में हमारे सामने तथ्य कम हैं, लेकिन फिर प्रश्न उठता है कि तथ्य सामने कौन लाएगा? गाजियाबाद बराबर आबादी वाला देश कतर क्या हमें झुका देगा? सरकार को जवाबदेही तय करनी चाहिए।

हर्षवर्धन त्रिपाठी: हमें तो यह भारत पर दबाव की रणनीति लगती है। हमास के सारे आतंकी नेता कतर में रहते हैं और वहां से पैसा जुटाते हैं। सुषमा स्वराज के कार्यकाल के दौरान इस्मालिक देशों के संगठन में पाकिस्तान की सुनवाई नहीं हुई थी तो हमारी कूटनीति में भी ताकत है। इस मसले पर जो काम होना चाहिए था, वह भारत सरकार ने किया है। कतर ने हमास का साथ देने के लिए यह काम किया है। कूटनीतिक रास्ते हों या फिर अंतरराष्ट्रीय न्यायालय हो, हम निश्चित तौर पर जीतकर आएंगे। 

विनोद अग्निहोत्री: कतर अभी हमास और फलस्तीन के साथ खड़ा है। उन्हें लगा कि यह भारत पर दबाव बनाने का मौका है। परिस्थितिजन्य साक्ष्य तो इसी ओर इशारा करते हैं कि यह भारत के खिलाफ साजिश है। कतर में नेपाल के एक नागरिक को मौत की सजा सुनाई गई और सजा देने से एक दिन पहले नेपाल सरकार को इस बारे में सूचित किया गया। वहां इसी तरह सब चलता है। हमारे प्रधानमंत्री जब कतर गए तो उनका गर्मजोशी से स्वागत हुआ था, तो प्रधानमंत्री कार्यालय को इस मामले में कतर से सीधे बात करनी चाहिए। 1971 में हमने पाकिस्तान को तोड़ दिया। फिर बांग्लादेश जन्मा। इस्लामिक देशों के संगठन में पाकिस्तान ने इस मामले को उठाया। वहां सभी तेल उत्पादक देश थे। अमेरिका भी उनके साथ था। भारत पर प्रतिबंधों की बात हुई। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने फलस्तीन के नेता यासेर अराफात से बात की और उनसे कहा कि आप हमारा पक्ष रखें। वहां यासेर अराफात ने पाकिस्तान को आईना दिखाया और कहा कि आप मुस्लिमों के हिमायती नहीं हैं। भारत की सेना ने बांग्लादेश में जाकर वहां की मुस्लिम आबादी को पाकिस्तानी फौज के अत्याचार से बचाया तो मुस्लिमों को बचाने वाला देश तो भारत है।

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