खबरों के खिलाड़ी:मोदी के दौर में राज्यों में असली क्षत्रप कौन, केंद्र की योजनाएं राज्यों में कैसे हावी हैं? – Khabaron Ke Khiladi: Who Is The Real Satrap In States In Modi Era Mp Rajsathan Assembly Elections Politics

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खबरों के खिलाड़ी:मोदी के दौर में राज्यों में असली क्षत्रप कौन, केंद्र की योजनाएं राज्यों में कैसे हावी हैं? – Khabaron Ke Khiladi: Who Is The Real Satrap In States In Modi Era Mp Rajsathan Assembly Elections Politics

खबरों के खिलाड़ी:मोदी के दौर में राज्यों में असली क्षत्रप कौन, केंद्र की योजनाएं राज्यों में कैसे हावी हैं? – Khabaron Ke Khiladi: Who Is The Real Satrap In States In Modi Era Mp Rajsathan Assembly Elections Politics
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Khabaron ke Khiladi: Who is the real satrap in states in Modi era Mp rajsathan assembly elections politics

खबरों के खिलाड़ी
– फोटो : अमर उजाला

विस्तार


मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भाजपा की पहली सूची सबसे पहले आ गई, वहीं कांग्रेस पिछड़ती दिखी। बाद में कांग्रेस ने मध्यप्रदेश में बढ़त बना ली और एक सीट छोड़कर सारे उम्मीदवार घोषित कर दिए। अब नजर राजस्थान पर है। सभी चुनावी राज्यों में मुफ्त की योजनाओं का मुद्दा हावी है, वहीं चेहरे भी चर्चा में हैं। भाजपा बड़े चेहरों को विधानसभा चुनाव लड़वा रही है। वह अब ‘गैलेक्सी ऑफ लीडरशिप’ चाहती है, लेकिन यह अचानक हुआ है। पहले भाजपा इस बारे में बात नहीं करती थी। वहीं, राज्यों में नेतृत्व को लेकर कांग्रेस में तस्वीर साफ है। इन्हीं मुद्दों पर बात करने के लिए ‘खबरों के खिलाड़ी’ की इस कड़ी में हमारे साथ चर्चा के लिए रामकृपाल सिंह, विनोद अग्निहोत्री, अवधेश कुमार, प्रेम कुमार और राखी बख्शी मौजूद रहे। पढ़ें, इस चर्चा के अहम बिंदु…

राजस्थान में अन्य राज्यों की तुलना में काफी कम उम्मीदवार तय हुए हैं? वहां क्या समीकरण बन रहे हैं?

रामकृपाल सिंह: भाजपा को सबसे ज्यादा उम्मीद राजस्थान से ही नजर आ रही है। 2013 में जब वहां विधानसभा चुनाव हुए थे, तब देश में अन्ना हजारे के आंदोलन का असर था। तब राजस्थान में कांग्रेस चुनाव हार गई, वहीं मध्यप्रदेश में भाजपा जीत गई। हो सकता है कि इस बार दोनों दलों के बीच कड़ा मुकाबला हो। 2012-13 में जो कमजोर हालत यूपीए की थी, केंद्र में वैसी सत्ता विरोधी लहर अभी 2023 में भाजपा को लेकर नहीं है। इसलिए भाजपा की राह कुछ आसान नजर आती है, बाकी नतीजों से तस्वीर साफ होगी। 

2014 में जब भाजपा जीती तो महाराष्ट्र, हरियाणा, उत्तर प्रदेश में भाजपा की तरफ से कोई चेहरा नहीं था। सभी दलों की अपनी-अपनी रणनीति होती है। यह कुल्हड़ और कंबल जैसा मामला है। जहां कंबल की जरूरत है, वहां कूलर काम नहीं आ सकता। हालात इस तरह बदले हैं कि अब राज्य की राजनीति में भी केंद्र की योजनाएं हावी हैं। जमीनी स्तर पर यह बदलाव तो आया है। रोटी, कपड़ा, मकान के बहाने केंद्र सरकार की राज्यों के मुद्दों में एंट्री हुई है। 






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