खबरों के खिलाड़ी:मध्य प्रदेश, राजस्थान में कैसे बदल रहे हैं समीकरण, बड़े नेताओं की कम सक्रियता के क्या मायने? – Khabron Ke Khiladi: How Are Equations Changing In Madhya Pradesh And Rajasthan

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खबरों के खिलाड़ी:मध्य प्रदेश, राजस्थान में कैसे बदल रहे हैं समीकरण, बड़े नेताओं की कम सक्रियता के क्या मायने? – Khabron Ke Khiladi: How Are Equations Changing In Madhya Pradesh And Rajasthan

खबरों के खिलाड़ी:मध्य प्रदेश, राजस्थान में कैसे बदल रहे हैं समीकरण, बड़े नेताओं की कम सक्रियता के क्या मायने? – Khabron Ke Khiladi: How Are Equations Changing In Madhya Pradesh And Rajasthan
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मध्य प्रदेश में भाजपा ने पहली सूची सबसे पहले जारी कर दी थी, लेकिन बाद में वह पिछड़ती दिखी। वहीं, शिवराज सिंह चौहान पहले से ज्यादा सक्रिय दिख रहे हैं। वहीं, राजस्थान में वसुंधरा राजे पहले सक्रिय नहीं थीं, लेकिन अब उनकी मौजूदगी नजर आ रही है। इस बीच, प्रधानमंत्री की रैलियां शुरू होने में देर हुई है। उधर, कांग्रेस राजस्थान में गुटबाजी से जूझती दिख रही है और मध्य प्रदेश में वह कमलनाथ के भरोसे है। ‘खबरों के खिलाड़ी’ की इस कड़ी में चुनावी राज्यों में बदलते समीकरणों पर चर्चा हुई। चर्चा के लिए राहुल महाजन, विनोद अग्निहोत्री, प्रेम कुमार, समीर चौगांवकर, पूर्णिमा त्रिपाठी और राखी बख्शी मौजूद रहे। आइए जानते हैं चर्चा के अंश…

मध्य प्रदेश के चुनाव में मुकाबला किस तरह नजर आ रहा है? भाजपा की सक्रियता पर क्या कहेंगे?

पूर्णिमा त्रिपाठी: मध्य प्रदेश का चुनाव शुरू से ही दिलचस्प हो रहा है। भाजपा ने प्रधानमंत्री की रैलियों के साथ धमाकेदार शुरुआत भी की थी, लेकिन अब भाजपा सुस्त नजर आ रही है। इसकी क्या वजह है, यह नहीं पता, लेकिन कांग्रेस अब फॉर्म में दिख रही है। चर्चा यह भी है कि विपक्षी गठबंधन के कई सहयोगी दलों ने अपने उम्मीदवार मध्य प्रदेश में उतार दिए हैं। उधर, प्रधानमंत्री और गृह मंत्री की रैलियों की शुरुआत हो रही है। 

राखी बख्शी: मोदी नाम का ब्रांड और चेहरा कहीं पीछे नहीं है। अभी भी उनका नाम मायने रखता है। पिछले कुछ दिनों की बात करें तो भाजपा चंबल में सक्रिय नजर आ रही है। मोमेंटम अभी बनता नहीं दिखा, लेकिन हमें लगता है कि यह आने वाले एक हफ्ते में बनता दिखेगा। मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भाजपा अब शिवराज, वसुंधरा और रमन सिंह पर भरोसा जताते हुए दिख रही है। 

राहुल महाजन: कुछ दिनों पहले के मुकाबले अब शिवराज सिंह चौहान ज्यादा आत्मविश्वास से भरे नजर आ रहे हैं। पहले इस तरह के कयास थे कि पार्टी उनसे किनारा कर रही है। अब वे सक्रिय दिख रहे हैं। चुनाव में उनकी भूमिका बढ़ गई है। राजस्थान में वसुंधरा राजे के मामले में भी यही हुआ है। हो सकता है कि भाजपा आलाकमान से दोनों नेताओं को संकेत मिल गए हों। भाजपा ने मध्य प्रदेश में पिछली बार अपना वोट प्रतिशत बढ़ाया था, वहीं कांग्रेस की पिछले चुनाव में सीटें बढ़ गई थीं। इस लिहाज से यह कहा जा सकता है कि दोनों ही पार्टियों का कोर वोटर उनके साथ बना हुआ है। मध्य प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस में बराबरी का मुकाबला दिखाई पड़ रहा है। मध्य प्रदेश के नतीजों से शिवराज और ज्योतिरादित्य सिंधिया का भविष्य तय होना है। 

समीर चौगांवकर: जब सिंधिया भाजपा में आए तो उपचुनाव में अपने कई उम्मीदवारों को धुआंधार प्रचार के बावजूद जितवा नहीं सके। मुरैना में उनके उम्मीदवार हार गए, शिवपुरी में हारते-हारते बचे। भाजपा का उद्देश्य था कि सिंधिया के खेमा बदलने से कांग्रेस टूट जाएगी, लेकिन कांग्रेस अब मजबूती से लड़ती दिख रही है। प्रधानमंत्री का चेहरा, अमित शाह का संगठन कौशल होने के बावजूद कांग्रेस वहां टक्कर दे रही है। 

मध्य प्रदेश में आम आदमी पार्टी की एंट्री को किस तरह देखते हैं? 

प्रेम कुमार:

माना जा रहा है कि इससे कांग्रेस को नुकसान हो सकता है। एक पहलू यह भी है कि जहां भी आम आदमी पार्टी बढ़ती है, वहां भाजपा की सियासत ही खत्म होती दिखती है। दिल्ली और पंजाब का उदाहरण हमारे सामने है। यह बात जरूर है कि मध्य प्रदेश में आम आदमी पार्टी को उतना गंभीरता से नहीं लिया जा रहा, जितना गंभीरता से उसे पंजाब में लिया गया था। हिमाचल में वह अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई। गुजरात में उसने थोड़ा दम दिखाया। हालांकि, मध्य प्रदेश में चुनाव दो ध्रुवों भाजपा और कांग्रेस के बीच ही है। कांग्रेस यहां ज्यादा सक्रिय दिखाई देती है। इस बार लड़ाई मोदी की गारंटी बनाम गहलोत की गारंटी और मोदी की गारंटी बनाम भूपेश बघेल की गारंटी के बीच है। 

समीर चौगांवकर: आम आदमी पार्टी की बात करें तो मध्य प्रदेश के नगरीय निकाय चुनाव में उसे सात फीसदी वोट मिले थे। अगर यह वोट बैंक आम आदमी पार्टी के साथ जुड़ा रहा या इसमें बढ़ोतरी हुई तो यह भाजपा-कांग्रेस, दोनों को नुकसान करेगा। किसे ज्यादा नुकसान करेगा, यह नतीजों के दिन पता चलेगा। आम आदमी पार्टी विंध्य में मजबूत दिखती है। वहां पर वह भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती है। अगर बहुमत के लिए मार्जिन कम रहता है तो दोनों ही राज्यों में भाजपा को शिवराज और वसुंधरा पर दोबारा भरोसा जताना होगा।

इस बार विधानसभा चुनावों को किस तरह देखते हैं?

विनोद अग्निहोत्री: पहले आपको मिजोरम की तरफ ले चलता हूं। वहां प्रधानमंत्री एक भी बार प्रचार के लिए नहीं गए हैं। यह अपने आप में विश्लेषण का विषय है क्योंकि सरकार ने पूर्वोत्तर के विकास के लिए बहुत काम किया है। मणिपुर के संघर्ष का प्रभाव मिजोरम पर भी पड़ रहा है। 

तेलंगाना में चुनाव दिलचस्प है। वहां सीधी लड़ाई बीआरएस बनाम कांग्रेस की है। हाल ही में बीआरएस के कई नेता कांग्रेस में शामिल हुए हैं। कर्नाटक जीतने के बाद कांग्रेस दक्षिण में ताकतवर हुई है। तेलंगाना में कांग्रेस अगर जीत जाती है तो उसका असर मध्य प्रदेश और राजस्थान के चुनाव नतीजों से भी बड़ा होगा। तेलंगाना में कांग्रेस का उदय होना दक्षिण भारत में कांग्रेस के लिए बड़ा संकेत होगा। ठीक ऐसा ही भाजपा के साथ तब हुआ था, जब उसने पहली बार असम में चुनाव जीता था। 

अब मध्य प्रदेश पर आते हैं। भाजपा और कांग्रेस, दोनों ही बागियों से जूझ रही है। अमित शाह ने जबलपुर में एक बागी नेता से बात की, फिर भी वे नहीं माने। बसपा से कांग्रेस को जितना नुकसान होना था, वह कांशीराम के समय हो चुका। अब उसे और नुकसान नहीं हो सकता। सपा और आप की बात करें तो उनके नेता जिस मूल पार्टी को छोड़कर आए हैं, उसके ही वोट काटेंगे। हालांकि, इस तरह के द्विपक्षीय चुनावों में वोटर अपनी पसंद स्पष्ट रखता है। वह दो मुख्य पार्टियों में से किसी एक को वोट करना पसंद करेगा। ग्वालियर-चंबल में कांग्रेस को पिछली बार काफी सफलता मिली थी। श्रेय ज्योतिरादित्य सिंधिया को गया था। उपचुनावों में सिंधिया कई सीटों पर भाजपा को जीत नहीं दिला पाए। ये संकेत हैं कि लोग बगावत को शायद ज्यादा पसंद नहीं करते। कर्नाटक में हमने देखा कि कई बागी हार गए। जब आप दल बदल लेते हैं तो कार्यकर्ता दलबदलू नेता को स्वीकार नहीं कर पाता। विंध्य में भाजपा के लिए मुश्किलें दिख रही हैं। महाकौशल में यह देखना होगा कि क्या कांग्रेस को सहानुभूति का फायदा मिलेगा? मालवा-निमाड़ में मुकाबला कांटे का दिख रहा है। राजस्थान में अशोक गहलोत ही प्रधानमंत्री मोदी का मुकाबला करते दिख रहे हैं। फिर भी वहां भाजपा कड़ी टक्कर दे रही है। सभी चुनावी राज्यों की बात करें तो भाजपा को सबसे ज्यादा उम्मीद राजस्थान से ही दिख रही है।

क्या वसुंधरा राजे अब सक्रिय दिख रही हैं?

पूर्णिमा त्रिपाठी: वसुंधरा को पहले भाजपा ने अहमियत नहीं दी थी, लेकिन उनकी राज्य में जो पकड़ है, उसे भाजपा नजरअंदाज नहीं कर सकती। अब वे चुनाव भी लड़ रही हैं, उनके खेमे के नेताओं को टिकट भी मिले हैं। क्षेत्रीय क्षत्रपों को भाजपा ने नजरअंदाज करने की कोशिश की थी, लेकिन अब ऐसे सभी नेता सक्रिय दिख रहे हैं। अब देखना होगा कि प्रधानमंत्री की रैलियों के बाद वहां समीकरण किस तरह बदलते हैं। बगावत तो राजस्थान में सचिन पायलट ने भी की थी। तब वसुंधरा राजे तटस्थ नजर आई थीं और भाजपा गहलोत की सरकार नहीं गिरा पाई। 

राखी बख्शी: वसुंधरा राजे का एक बयान आया कि ‘अब मैं रिटायरमेंट ले सकती हूं’। इसमें संदेश छुपा है। भाजपा की नई सूची में सात महिलाओं को जगह मिली है। महिलाओं और युवाओं का मुद्दा राजस्थान में खास तौर पर प्रासंगिक है। कांग्रेस को सबसे बड़ी उम्मीद राजस्थान में नहीं, तेलंगाना में है। मध्य प्रदेश और राजस्थान में लगातार समीकरण बदल रहे हैं। कभी भाजपा तो कभी कांग्रेस ज्यादा सक्रिय नजर आती है।

राहुल महाजन: पिछले चुनाव में नारा लगा था कि प्रधानमंत्री से बैर नहीं…। अब वहां कहा जा रहा है कि गहलोत से बैर नहीं, कांग्रेस की खैर नहीं। गहलोत अच्छे मुख्यमंत्री हैं, लेकिन पायलट फैक्टर को नजरअंदाज नहीं कर सकते। कांग्रेस असमंजस में है कि वह मुख्यमंत्री किसे देखना चाहती है। यह पसोपेश राजस्थान में कांग्रेस के लिए मुश्किलें पैदा कर रहा है। छत्तीसगढ़ में ओबीसी एक बड़ा फैक्टर है। आदिवासी वर्ग भी है। भाजपा यह नहीं चाहती कि ओबीसी वोटर उससे छिटके।

भाजपा-कांग्रेस को क्या गुटबाजी नुकसान पहुंचा सकती है? 

प्रेम कुमार: गुट सभी जगह होते हैं, लेकिन गुटबाजी नुकसान पहुंचाती है। भाजपा में भी गुटबाजी है। दोनों ही दलों में गुटबाजी में आलाकमान शामिल है, लेकिन दोनों ही दलों ने मैनेज करने की कोशिश की है। जिस तरह से वसुंधरा राजे ने रिटायरमेंट की बात कही तो इसमें संदेश छुपा है। कहीं न कहीं वे संकेत दे रही हैं कि यह उनका आखिरी चुनाव है। इसके बावजूद भाजपा वहां मजबूत दिख रही है। ओबीसी और जातिगत जनगणना के मुद्दों की बात करें तो भाजपा को कांग्रेस की रणनीति का जवाब देने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। 

छत्तीसगढ़ में क्या समीकरण बदल रहे हैं? 

विनोद अग्निहोत्री: हिंदुत्व की राजनीति का काट कांग्रेस ने कर्नाटक में ढूंढ लिया। मध्य प्रदेश में कमलनाथ ने भी हिंदुत्व की काट ढूंढ ली। यह चुनाव मोदी की गारंटी बनाम बघेल की गारंटी का नहीं है। प्रधानमंत्री खुद नहीं चाहते कि हर चुनाव में उनके जैसे बड़े नेता को झोंक दिया जाए। इसी वजह से उन्होंने कहा कि हमारा चेहरा तो कमल है। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में बुनियादी फर्क है। छत्तीसगढ़ में सिर्फ बघेल ही कांग्रेस नहीं हैं। उधर, प्रधानमंत्री खुद अपनी जाति का उल्लेख कर रहे हैं। उनके भाषण में विरोधाभास भी नजर आया है। कहीं वे खुद को ओबीसी कहते हैं, कहीं वे कहते हैं कि एक ही जाति है- गरीबी। कहीं न कहीं ओबीसी कार्ड काम कर रहा है, इसलिए भाजपा को डिफेंसिव होना पड़ रहा है। वहां ईडी की कार्रवाई और आरोप भी सवालों के घेरे में हैं। यह नया ट्रेंड है। 

समीर चौगांवकर: ईडी के छापों का असर आदिवासी क्षेत्रों पर नहीं पड़ने वाला। रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़ी दिक्कतें उनके लिए बड़ा मुद्दा है। यह जरूर हो सकता है कि ईडी अब सीएम भूपेश बघेल को पूछताछ के लिए बुलाए।

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