कुरुक्षेत्र:विपक्ष के सामाजिक न्याय के मुकाबले पीएम मोदी का आर्थिक न्याय; समझें सभी सियासी पहलू – Kurukshetra: Pm Modi Economic Justice Compared To Opposition Social Justice Know All About It

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कुरुक्षेत्र:विपक्ष के सामाजिक न्याय के मुकाबले पीएम मोदी का आर्थिक न्याय; समझें सभी सियासी पहलू – Kurukshetra: Pm Modi Economic Justice Compared To Opposition Social Justice Know All About It
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एलान किया है कि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना यानी देश के 80 करोड़ गरीब लोगों को प्रति माह पांच किलो मुफ्त राशन की योजना अगले पांच साल तक अभी और जारी रहेगी। प्रधानमंत्री की इस घोषणा ने चुनावी माहौल में एक नई बहस को जन्म दे दिया है। विपक्ष इसे मौजूदा विधानसभा और अगले साल अप्रैल में होने वाले लोकसभा चुनावों के लिए वोट बटोरने की कोशिश बता रहा है तो भाजपा इसे भूख के विरुद्ध लड़ाई की प्रधानमंत्री और भाजपा की प्रतिबद्धता बता रही है।

उधर जैसे-जैसे पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव जोर पकड़ते जा रहे हैं, वैसे-वैसे केंद्रीय जांच एजेंसियों ईडी, सीबीआई आयकर विभाग के छापे और जांच में भी अभूतपूर्व तेजी आ गई है। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा समेत राज्य के कुछ अन्य सत्ताधारी नेता ईडी की जांच के लपेटे में हैं तो छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पर भी ईडी ने महादेव एप घोटाले में 508 करोड़ रुपए लेने का आरोप लगा दिया है।

गहलोत और बघेल दोनों ने ही इसे चुनावों में हार के डर से भाजपा की हताशा बताते हुए चुनौती दी है कि भाजपा ईडी के सहारे चुनाव लड़ने की बजाय खुद मैदान में मुकाबला करे। भाजपा जहां ईडी की कार्रवाई को कांग्रेस के भ्रष्टाचार से जोड़ रही है तो कांग्रेस इसे जांच एजेंसियों का खुला दुरुपयोग बता कर भ्रष्टाचार के आरोपों को खारिज कर रही है। सवाल है कि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना को अगले पांच साल तक और बढ़ाए जाने तथा विपक्षी नेताओं पर जांच एजेंसियों की कार्रवाई का चुनावों पर कोई असर पड़ेगा या नहीं।

बात पहले गरीबों को मुफ्त राशन की योजना को पांच साल बढ़ाने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा पर। गरीबों को मुफ्त राशन देने की यह योजना यूपीए सरकार द्वारा पारित खाद्य सुरक्षा कानून के तहत कोविड काल में शुरू की गई थी, जिसे बाद में बढ़ाकर दिसंबर 2023 तक कर दिया गया था। माना गया था कि सरकार ने 2022 में होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर इसे बढ़ाया है। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के विधानसभा चुनावों में इसका फायदा भी भाजपा को मिला जब उसे इस योजना के लाभार्थियों का वोट खासी संख्या में मिला। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस योजना को अगले पांच साल तक बढ़ाने की घोषणा छत्तीसगढ़ की एक चुनावी सभा में की। इस घोषणा के आर्थिक और राजनीतिक निहितार्थ हैं।

दरअसल, हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक के चुनावों में हुई हार से भाजपा बेहद परेशान हो गई। उसके फौरन बाद विपक्षी दलों के गठबंधन इंडिया के गठन ने भी उसकी परेशानी बढ़ाई। इससे निबटने के लिए भाजपा ने महाराष्ट्र में एनसीपी में फूट डलवाई तो दूसरी तरफ इंडिया के 28 दलों के मुकाबले एनडीए के 38 दलों का जमावड़ा भी इकट्ठा किया। प्रधानमंत्री मोदी ने भोपाल की एक सभा में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) का भी मुद्दा गरम किया। लेकिन इस पर हुई प्रतिक्रिया ने उन्हें अपने कदम वापस लेने को विवश किया।

फिर तमिलनाडु के सनातन विवाद ने भाजपा को एक नया मुद्दा दिया। भाजपा ने इसे अपने हिंदुत्व की धार तेज करने के लिए इस्तेमाल करना शुरू कर दिया और विपक्षी इंडिया गठबंधन को दबाव में ला दिया। फिर संसद और विधानसभाओं में महिलाओं को एक तिहाई आरक्षण के जरिए भाजपा ने नई राजनीतिक माहौलबंदी करने की कोशिश की, लेकिन विपक्ष ने इसे पिछड़े वर्ग की महिलाओं के आरक्षण और लागू होने में होने वाली देरी से जोड़ कर कमजोर कर दिया।

इसके साथ ही गांधी जयंती के दिन बिहार सरकार द्वारा जारी किए गए जातीय जनगणना के आंकड़ों से देश में जातीय जनगणना कराने की मांग ने जोर पकड़ लिया। कांग्रेस खासकर राहुल गांधी ने इस मुद्दे को अपनी हर सभा में जोरशोर से उठाना शुरु कर दिया है। उन्होंने इस मांग में पिछड़े आदिवासी और दलित वर्गों की हिस्सेदारी के सवाल से जोड़कर इसे बेहद धारदार बना दिया। हाल ही में बिहार सरकार द्वारा जातीय जनगणना के आर्थिक सर्वेक्षण के आंकड़े भी जारी करके राज्य में पिछड़े दलित आदिवासियों के लिए 65 फीसदी आरक्षण का प्रावधान करने का फैसला करके सामाजिक न्याय के अपने मुद्दे को और धारदार बना दिया है।

इसमें अगड़े गरीबों का दस फीसदी आरक्षण जोड़ देने से यह प्रतिशत 75 फीसदी हो जाता है। विपक्ष के इस दांव की काट के लिए प्रधानममंत्री नरेंद्र मोदी ने पहले इसे  जातिवादी राजनीति का पाप बताया और कहा कि उनके लिए सिर्फ एक ही जाति है और वह है गरीब की जाति। वह आजीवन गरीबों के कल्याण के लिए काम करते रहेंगे और अब प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना को अगले पांच साल के लिए बढ़ाने की घोषणा करके मोदी ने अपने एलान को अमली जामा पहना दिया है।

इसके जरिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विपक्षी इंडिया गठबंधन और राहुल गांधी के सामाजिक न्याय के मुद्दे की काट अपने आर्थिक न्याय के हथियार से करना चाहते हैं। एक तरफ वह हर सभा में कह रहे हैं कि वह स्वयं ओबीसी समाज से हैं तो दूसरी तरफ 80 करोड़ गरीबों को पांच साल तक मुफ्त राशन के जरिए वह यह भी साबित करन चाहते हैं कि विपक्ष सिर्फ बातें और वादे करता है जबकि उन्हें गरीबों की बिना किसी जातीय भेदभाव के चिंता है। अपनी बात कि उनके लिए सिर्फ एक ही जाति है गरीब को सच साबित करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास इससे बेहतर और कोई कदम नहीं हो सकता था कि वह गरीबों को मिलने वाले मुफ्त राशन की समय सीमा पांच साल के लिए बढ़ा दें।

इसके पहले अपने जन्मदिन 17 सिंतबंर को प्रधानमंत्री मोदी ने विश्वकर्मा योजना को प्रारंभ किया जिसके तहत बिना किसी जातीय भेदभाव के सभी कुशल कामगारों (शिल्पियों) लोहार, बढ़ई, नाई, कुम्हार आदि को उनके व्यवसाय को आगे बढ़ाने के लिए सस्ते ब्याज दर पर कर्ज उपलब्ध होगा। अपनी इस योजना के जरिए भी मोदी ने राहुल गांधी और विपक्ष के पिछड़े कार्ड को कमजोर करने की कोशिश की है।

प्रधानमंत्री के ये दोनों कदम विपक्ष की सामाजिक न्याय की लड़ाई जिसमें पिछड़ों, दलितों, आदिवासियों को उनकी संख्या के हिसाब से हिस्सेदारी देने के लिए जातिवार जनगणना का मुद्दा उठाया जा रहा है को गरीब कार्ड से काटने के लिए उठाए गए हैं।साफ है कि मौजूदा चुनाव इसका ट्रेलर होंगे कि राहुल के सामाजिक न्याय और मोदी के आर्थिक न्याय में कौन भारी होगा। 

यही नहीं जब से आम आदमी पार्टी और उसके  नेता अरविंद केजरीवाल ने मुफ्त बिजली, मुफ्त पानी, मुफ्त बस यात्रा महिलाओं को मासिक भत्ता जैसी कई योजनाओं की बरसात की और दिल्ली व पंजाब में उसे जबर्दस्त राजनीतिक सफलता मिली तब से सभी राजनीतिक दलों में लोकलुभावन घोषणओं और योजनाओं की होड़ लग गई। कांग्रेस ने इसी रणनीति के तहत हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में शानदार जीत दर्ज की। इससे उत्साहित कांग्रेस अब मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भी इसी राह पर चल पड़ी है। राजस्थान में तो अशोक गहलोत अपनी लोकलुभावन योजनाओं के बल पर ही भाजपा के बदलाव के नारे का मजबूती से मुकाबला कर रहे हैं।

आमतौर पर लोकलुभावन योजनाओं को मुफ्त की रेवड़ियां कहने वाली भाजपा ने भी विधानसभा चुनावों में सशक्तीकरण के नाम पर लोकलुभावन घोषणओं झड़ी लगा दी है। कांग्रेस अपनी घोषणओं को गारंटी के रूप में पेश करती है तो इसके जवाब में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपनी घोषणाओं को मोदी की गारंटी का नाम दे दिया है और गरीबों को मफ्त राशन बांटने वाली प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना को समय विस्तार देकर उन्होंने कांग्रेसी गारंटी और विपक्ष की लोकलुभावन घोषणाओं पर इस उम्मीद से एक बड़ा वार किया है कि उनकी यह घोषणा 2023 और 2024 के चुनावों में भाजपा का बेड़ा पार लगा सकती है, लेकिन मुकाबला लोक कल्याण और लोक हिस्सेदारी के बीच है। विपक्ष पिछड़ों दलितों आदिवासियों को हिस्सेदारी की बात करके उन्हें अपने पाले में लाना चाहता है तो सत्ता पक्ष लोक कल्याण के जरिए उनका भरोसा जीतने की कोशिश में है। 

अब बात केंद्रीय जांच एजेंसियों के राजनीतिक दुरुपयोग के मुद्दे पर होने वाली राजनीति की। विधानसभा चुनावों के बीच राजस्थान और छत्तीसगढ़ में प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी और आयकर विभाग यानी इनकम टैक्स के छापों और जांच कार्रवाई ने जहां भाजपा को कांग्रेस के नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाने का मौका दिया है तो वहीं कांग्रेस को यह जवाबी वार करने का अवसर भी दिया है कि अपनी हार के डर से भाजपा अब एजेंसियों के इस्तेमाल पर उतर आई है। सट्टेबाजी के लिए जांच के घेरे में आए महादेव एप के संचालकों से कथित रूप से 508 करोड़ रुपए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल तक पहुंचने के ईडी के आरोप पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर भाजपा के हर छोटे बड़े नेता ने कांग्रेस और भूपेश बघेल को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।

गृह मंत्री अमित शाह ने तो बघेल को अपने पांच साल और राज्य में भाजपा के शासन के विकास कार्यों पर बहस की चुनौती दी, जिसे भूपेश बघेल ने स्वीकार करके कहा कि शाह समय और दिन तय कर लें वह उनसे कहीं भी बहस को तैयार हैं। बघेल ने ईडी सीबीआई को भाजपा की बी टीम बताकर भ्रष्टाचार के आरोपों की हवा निकालने का दांव चला है। बघेल और कांग्रेस के दूसरे नेताओं ने सवाल किया है कि आरोप लगाने से पहले ईडी और भाजपा सबूत दें। साथ ही कांग्रेस ने केंद्रीय मंत्री और दिमनी से भाजपा उम्मीदवार नरेंद्र सिंह तोमर के बेटे के एक कथित वीडियो को लेकर भाजपा से भ्रष्टाचार पर सवाल पूछे हैं।

इसी तरह राजस्थान में भी ईडी के छापों को लेकर भाजपा अशोक गहलोत के खिलाफ भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर हमलावर है। गहलोत ने भी बघेल की ही तरह ईडी समेत सभी केंद्रीय जांच एजेंसियों की कार्रवाई को हार के डर से भाजपा की हताशा बताते हुए कहा है कि राज्य की जनता इसका माकूल जवाब देगी। कुल मिलाकर विधानसभा चुनावों में केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई भी एक मुद्दा बन गई है। अब तीन दिसंबर को जनता जो फैसला देगी आगे की राजनीतिक दिशा उससे ही तय होगी।

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